लेखनी कविता -नन्हा मछुआ - बालस्वरूप राही
नन्हा मछुआ / बालस्वरूप राही
बंसी डाल नदी में नीलू, बन कर बैठा मछुआ,
मछली फँसी न कोई दिन –भर, फँसा अंत में कछुआ।
नीलू समझा फँसी आज तो बहुत बड़ी मछ्ली है,
इतना ज़ोर लगाने पर ही जो बाहर निकली है।
बाहर निकल मगर कछुए ने जब गरदन मटकाई,
उसने सोचा- बैठे बैठे यह क्या शामत आई।
हाथ मिलाने को कछुए ने हाथ बढ़ाया आगे,
नीलू जी सब फेंक- फाँक कर बड़ी ज़ोर से भागे।